शर्मा बंधुओं का विरोध नहीं, भाजपा की खिलाफत
विरोधियों की संख्या एक दर्जन में सिमटी
कांग्रेस से भाजपा में आये जनप्रतिनिधि कर रहे संगठन मजबूत करने की बात
नर्मदापुरम। विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजते ही भाजपा और कांग्रेस दोनों ही में दावेदारों के बीच टिकट के लिए घमासान शुरू हो गया है। इटारसी नर्मदापुरम विधानसभा क्षेत्र में बरसों से शर्मा बंधुओं का दबदबा रहा है। उन्होंने इस क्षेत्र को भाजपा के अभेद किले में परिवर्तित कर दिया है। चुनाव में टिकट की दावेदारी करना हर कार्यकर्ता का अधिकार होता है और भारतीय जनता पार्टी का संविधान भी हर कार्यकर्ता को इसकी अनुमति देता है। लेकिन किसी दूसरे की दावेदारी का विरोध किए जाने की, किसी को कोई इजाजत नहीं है। आप अपनी बात पार्टी फोरम में रख सकते हैं, लेकिन किसी विशेष व्यक्ति का विरोध नहीं कर सकते। यह सीधे तौर पर अनुशासनहीनता मानी जाती रही है, लेकिन इसके बावजूद उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ विरोधी कार्यकर्ता, नेता हैं जो शर्मा बंधुओं को टिकट देने का प्रायोजित विरोध कर रहे हैं।
पैरों की जमीन तो क्या, कुछ के पास चप्पल तक नहीं
दरअसल यह विरोध पूर्व नियोजित तरीके से किया जा रहा है ताकि प्रदेश नेतृत्व तक संदेश पहुंच सके कि क्षेत्र में शर्मा बंधुओं का काफी विरोध है और टिकट देने पर पार्टी के नुकसान की पक्की संभावना है। विरोधी अपना मंतव्य पूरा करने में कितने सफल होंगे इसकी न तो कोई वजह है और ना ही दूर-दूर तक कोई संभावना नजर आ रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि टिकट मांगने के लिए नेता का जनाधार और पैरों के नीचे राजनीतिक जमीन होना जरूरी है। लेकिन विरोध करने वाले इन अधिकांश नेताओं के पैरों के नीचे जमीन तो क्या चप्पल तक नजर नहीं आ रही है, इसलिए इनमें से किसी को टिकट देकर पार्टी जोखिम उठाना चाहेगी, इसकी संभावना न के बराबर है। यदि किसी कार्यकर्ता या नेता को टिकट चाहिए तो वह भाजपा की बैठक में अपना नाम दे सकता है, न की किसी उम्मीदवार का विरोध कर सकता है।
पार्षद की काबिलियत नहीं सपने देख रहे हैं विधायक के
शर्मा बंधु के विरोध करने वालों की संख्या 12 से 15 लोगों की है । हर साल हर विधानसभा में यही लोग विरोध करते आए हैं और अभी भी विरोध कर रहे हैं। इनका मकसद सिर्फ शर्मा बंधु नहीं भाजपा को नुकसान पहुंचाना है, जितने भी लोग विरोध कर रहे हैं इन विरोध करने वालों का रिकॉर्ड निकाला जाए तो सच्चाई खुद सामने आ सकती है। इनका अपने वार्ड में, शहर कितना जनाधार है इसका पूरा फीडबेक पार्टी के पास है। ज्यादातर पदाधिकारी इनकी जमीनी राजनीतिक हैसियत से वाकिफ है। बताया जाता है कि पर्दे के पीछे वह लोग हैं जो लोग पार्षद का चुनाव जीत नहीं सकते, वह विधायक की टिकट मांग रहे हैं। बता दें कि अपने ही वार्ड से अपने ही पार्षद को चुनाव नहीं जिता नहीं पाए और ऐसे लोग भाजपा से टिकट की दौड़ में है। इनमें से कुछ कांग्रेस से भाजपा में आए और टिकट की दौड़ में शामिल हो गए। उन्हें यह नहीं मालूम की जिले की विधानसभा में कार्यकर्ता और जनता के बीच सतत संपर्क बनाने वाला व्यक्ति इस विधानसभा क्षेत्र में विजयी होते चला आ रहा है। यह नहीं की एकदम से आए और हमें टिकट दे दो ।
सर्वे के बाद विरोध या समर्थन बेमतलब
मिशन 2023 को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही गंभीर है। बीजेपी हर हाल में यह चुनाव पांचवीं बार जीतना चाहती है यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व में चुनाव की कमान सीधे अपने हाथों में ले रखी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, मंत्री भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव स्थिति पर पहले नजर बनाए हुए हैं। पार्टी की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुला और अंदरूनी तौर पर जीत और प्रत्याशी के लिए सर्वे किया जा चुका है। हाल ही में दूसरे प्रदेश के विधायकों को कार्यकर्ताओं की राय टिकट के दावेदारों की जमीनी पकड़ आम जनता से संवाद और सरकार तथा मौजूदा विधायक के कामकाज का आंकलन करने के लिए भेजा गया था, जाहिर है दावेदारों में से टिकट के लिए नाम का चयन इसी सर्वे के आधार पर किया जाना है। ऐसी स्थिति में किसी के नाम का विरोध अथवा किसी का समर्थन करना किसी मतलब का नहीं है।
वर्तमान विधायक का गांवों में है जबरदस्त समर्थन
वर्तमान विधायक डॉ सीता शरण शर्मा का नर्मदापुरम और इटारसी के आसपास के गांव में अच्छा समर्थन है। वे पूरे कार्यकाल में इन गांव में घूमते हैं, दौरा करते हैं, लोगों की समस्याएं सुनते हैं, सभी कार्यक्रमों में जाते हैं। समस्याओं का तुरंत निराकरण किया जाता है। इसलिए जनसमूह उनके साथ है। कुछ लोग अफवाह उड़ा देते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। शर्मा बंधुओं का वर्चस्व काफी है। अत: हर हाल में उनकी जीत सुनिश्चित मानी जाती है
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