भोपाल. यहां से 45 कि. दूर है सीहोर शहर। रियासत के जमाने में ये शहर भोपाल की राजधानी हुआ करता था। भोपाल रियासत के कई बड़े-बड़े अंगरेज आफीसर्स यहीं रहा करते थे। फटफटी साहब उस जमाने के बड़े सख्त आफीसर थे। लोग उनसे डरते थे। उनकी हवेली को दूर से ही प्रणाम कर चल देते थे। ये हवेली आज भी मौजूद है पर खस्ता हाल में-खंडहर ही बन चुकी है। अंग्रेज अधिकारी का असली नाम तो आज किसी को नहीं पता पर उनकी हवेली आज भी फटफटी साहब के नाम से ही जानी जाती है। फटफटी इसलिए कि उस जमाने में ये आफीसर लंदन से अपनी बाइक लेकर आए थे और इसकी आवाज दूर दूर तक सुनाई देती थी। आवाज सुनकर लोग डरकर भाग जाते।
बात 1976 की है। मेरे मित्र ए़डिशनल कलेक्टर आर.पी.शर्मा का तबादला सीहोर हुआ। मैं अचानक उनसे मिलने पहुंचा तो देखा वो इस हवेली के मुख्य व्दार पर पड़ा ताला तुड़वा रहे थे। वहां काफी भीड़ थी। पुलिस भी पहुंच चुकी थी। लोग चिल्ला रहे थे ताला मत तुड़वाओ,यहां रहने मत आओ, ये भूत बंगला है। पर मेरे मित्र ने किसी की नहीं सुनी। बढ़ती भीड़ को देखकर उन्होंने पुलिस बुलवा ली थी। जिसके पास घर की चाबी थी वो भी कांप रहा था और बार बार मिन्नत कर रहा था ताला न खोलें। घर 60 सालों से बंद पड़ा है ,यहां कोई नहीं रह सकता है पर शर्मा साहब बोले मैं इन बातों पर भरोसा नहीं करता । उन्होंने पुलिस से पंचनामा बनवाकर ताला तोड़ दिया। अंदर का नजारा देखकर हम सब सहम गए। हजारों चमागदड़ें , कई सांप,बिच्छू, बड़ी-बड़ी घास और न जाने क्या-क्या। शर्माजी मुझसे बोले-मैंने इस घर में रहने का फैसला कर लिया है। मैंने कहा ये क्या कह रहे हैं आप? बहुत समझाया पर नहीं माने और मुझे वहां रूकने का आदेश देकर चले गए।
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| ये हवेली की 30 साल पुरानी तस्वीर है। |
दूसरे दिन से घर की साफ-सफाई शुरू हो गई। मैं भी एक हफ्ते बाद होटल से यहां शिफ्ट हो गया।घर एकदम नया हो गया था। पुताई और मरम्मत का काम भी शुरू हो गया था। बारिश के दिन थे बहुत अच्छा लग रहा था। एक दिन जोरदार आंधी तूफान आया, शायद रात के 9 बज रहे होंगे। मैं कुछ काम कर रहा था, अचानक लाइट चली गई। मैंने चपरासी से लालटेन जलाने को कहा। वो लालटेन लेकर आ गया। उसकी रोशनी में मैं मेरा काम करने लगा। थोड़ी देर में मुझे महसूस हुआ कि मेरे पीछे कोई खड़ा है, मुड़कर देखा तो कोई नहीं। मुझे लगा शायद चपरासी होगा। फिर लगा कोई तेजी से मेरे करीब से निकल गया। मुझे घबराहट होने लगी। आंधी-तूफान और बिजली गिरने का शोर सन्नाटे को चीर रहा था और मेरा डर बढ़ता जा रहा था। थोड़ी देर में सब थम गया। लाइट आ गई और मैं भी निश्चिंत होकर सोने चला गया। अचानक बीच रात में मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरी छाती पर बैठकर मेरा जोर से गला दबा रहा है। मैं घबराकर उठ गया, पानी पिया, बाहर देखा तो चपरासी सो रहा था। मैं सोचने लगा ये मेरा वहम है शायद। ये सोच ही रहा था कि मेरे सामने एक साया खड़ा था जो ओवरकोट,सिर पर हैट पहने हुए था और लगातार मुझे घूर रहा था। मेरी तो सांस अटक गई। जैसे तैसे मैं बाहर आया और चपरासी को पूरा किस्सा बताया। वो अंदर गया…बाहर आकर बोला वहां कुछ नहीं है। वो खौफनाक मंजर मेरी आंखों के सामने अभी भी घूम रहा था। अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। हम दोंनो बाहर ही बैठकर गपशप करने लगे। डर भगाने के लिए जो भी कर सकते थे किया ।
रात के 2 बजने लगे थे नींद आने लगी। देखा चपरासी घोड़े बेचकर सो रहा था। घर के बाहर बहुत सारे ईमली, आम और बेर के पेड़ थे। हवा में पत्तों की आवाज सुनाई दे रही थी। अचानक मेरी नजर बेर के पेड़ पर पड़ी तो क्या देखता हूं वही साया पेड़ की डाली पर पैर लटकाकर बैठा है और लगातार मुझे घूर रहा है। मैंने चपरासी को उठाया, नजारा देखकर वो भागा और मैं उसके पीछे। दूर सड़क पर हम दोनों ने बड़ी मुश्किल से रात गुजारी। सुबह हो गई थी पर हमारी हिम्मत नहीं हो रही थी घर में जाने की। सुबह जब हमने ये किस्सा लोगों को बताया तो उन्होंने कहा ये फटफटी साहब हैं जो बरसों से यहां घूम रहे हैं। थोड़ी देर बाद शर्मा साहब आ गए मैंने उन्हें आपबीती बताई। वो हंसने लगे और बोले ऐसा कुछ नहीं है। आप मानेंगे नहीं शर्मा साहब परिवार सहित इस हवेली में 20 साल तक रहे। उनके यहां से जाने के बाद यहां कोई नहीं रह सका। हवेली सुनसान पड़ी रही…और अब खंडहर में तब्दील हो गई। मेरे मित्र की हिम्मत को सलाम। हवेली से जुड़े और भी किस्से हैं….पर और कभी सही। लेखक:जी.एस.वैदय
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| ये आज की तस्वीर है। हवेली खंडहर में तब्दील हो गई है। |


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