भोपाल-इंदौर रोड पर‘लालघाटी’ स्थित है। ठीक बैरागढ़ से पहले। अब तो यहां कांक्रीट के जंगल बन गए हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब लोग यहां आने से डरते थे। इस जगह का नाम ‘लालघाटी’ कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी है। इतिहास की मानें तो इंसानी खून से नहाने के बाद इस घाटी का नाम लालघाटी पड़ा था। भोपाल का पहला नवाब ‘दोस्त मोहम्मद खां’, बैरसिया के पास का एक जमींदार था। उसकी नजर भोजपाल नगरी पर थी। जिसे आज भोपाल कहा जाता है। लेकिन भोजपाल पर कब्जा करने से पहले उसे रास्ते में जगदीशपुर के राजा ‘नरसिंह राव चौहान’ से जीत पाना मुश्किल लग रहा था।
धोखे से किया हमला
ऐसे में उसे एक चाल सूझी। उसने नरसिंह राव चौहान को संधी के लिए एक मैत्री भोज पर आमंत्रित किया। दोनों इस पर सहमत हो गए। तय हुआ कि दोनों पक्षों से 16-16 लोग इस संधी में शामिल होंगे। दोस्त मोहम्मद खां ने थाल नदी के किनारे तंबू लगवाए और एक शानदार मैत्री भोज का आयोजन किया। जब राजा नरसिंह राव चौहान के सारे लोग मदहोश हो गए तो धोखे से दोस्त मोहम्मद खां ने उनलोगों पर हमला करवा दिया। उसके सैनिकों ने वीभत्स तरीके से नरसिंह राव चौहान के सारे लोगों की हत्या कर दी। नरसंहार इतना भीषण था कि नदी का पानी खून से लाल हो गया। उस दिन से इस नदी का नाम हलाली नदी हो गया। हलालपुर बस स्टैंड भी इसी नदी के नाम पर है।
ऐसे पड़ा लाल घाटी का नाम
नरसिंह राव चौहान की हत्या के बाद दोस्त मोहम्मद खां ने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया और इसका नाम इस्लामपुर कर दिया जिसे आज इस्लामनगर के नाम से भी जाना जाता है। जगदीशपुर पर कब्जा होने के बाद नरसिंह राव चौहान के बेटे ने अपना राज्य वापस पाने के लिए छोटी सेना संगठित की और पश्चिमी राह से चढाई कर दी, हालांकि वो ‘दोस्त मोहम्मद खां’ के अमले के सामने टिक नहीं पाया। उसकी सेना के खून से नहाकर घाटी लाल हो गई और तब से ही इस घाटी का नाम लालघाटी पड़ गया।पाकिस्तान के विदेश सचिव बने शहरयार मोहम्मद खां ने अपनी पुस्तक ‘द बेगम्स ऑफ भोपाल’ में भी इस कहानी की पुष्टि की है।

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