श्रीमद् भागवत कथा श्रवण से मिलती है सभी कष्टों से मुक्ति : पंडित शुभम शास्त्री जी
नर्मदा पुरम । पोस्ट ऑफिस घाट नर्मदा पुरम में संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस में कथा व्यास पंडित शुभम दुबे ने श्रीमद् भागवत कथा का मंगलाचरण नारद जी की पूर्व जन्म की कथा महाभारत भीष्म कुंती स्तुति परीक्षित जन्म की कथा सुनाते हुए दुबे जी ने प्रभु की महिमा का गुणगान किया , और भक्तों को बताया कि भागवत में जो लिखा है और भगवान को जो प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। क्यों की राजा परीक्षित के कारण ही भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दुबे जी द्वारा बताया गया कि समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। और भगवान सुखदेव की कथा श्रवण कराते हुए उन्होंने कहा की शुकदेव जी महर्षि वेद व्यास के पुत्र थे और यह बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे।भगवान शिव, पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गयी और उनकी जगह पर वहां बैठे सुकदेव जीने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब उन्होंने शुकदेव को मारने के लिये दौड़े और उनके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा। शुकदेव जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागते रहै भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आये और सूक्ष्मरूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में गए। वह उनके मुख मंडल से उदर में प्रवेश हो गए कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यास जी के पुत्र कहलाये। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। जन्म लेते ही ये बाल्य अवस्था में ही तप हेतु वन की ओर चले गय ऐसी उनकी संसार से विरक्त भावनाएं थी। परंतु वात्सल्य भाव से रोते हुए व्यास भी उनके पीछे भागे। श्री मद भागवत कथा प्रतिदिन दोपहर 1 से 5 बजे तक चल रही है वही कथा की पूर्ण आहुति 16 जनवरी को होगी ।

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