मनोज सोनी एडिटर इन चीफ
++महाशिवरात्रि पर विशेष++
तिलक सिंदूर में सिंदूर चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं भवानी पति भगवान भोलेनाथ
तिलक सिंदूर के प्राचीन शिवलिंग को लेकर चर्चित हैं अनेक कथाएं
महाशिवरात्रि पर लगता है सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में विशाल मेला
बलराम शर्मा,
एके एन न्यूज़ नर्मदा पुरम। महाशिवरात्री का महान पर्व पूरे विश्व में भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। दुनिया में जितने भी शिवालय व शिवलिंग हैं उनकी अपनी अलग ही विशेषताएं हैं। नर्मदांचल में शिवालयों की संख्या सैंकड़ों नहीं हजारों में है। यदि शिवलिंग की संख्या एक लाख भी कही जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन महाशिवरात्रि के पावन पर्व की पूर्व संध्या पर तिलक सिंदूर के शिवलिंग का दर्शन करके अहोभाग्य महसूस हुआ।
जगत के प्राचीन शिवालयों में तिलक सिंदूर मंदिर की गणना होना स्वाभाविक है। नर्मदापुरम से करीब 30 किलोमीटर दूर सतपुड़ा की हरी भरी सुरम्य वादियों में भगवान भोलेनाथ का विशेष धाम तिलक सिंदूर की महिमा अद्भुत ही है। मुख्य विशेषता है कि दुनिया के शिवलिंगों में सिर्फ तिलक सिंदूर के शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाने की प्राचीन परंपरा है। यहां पर तीन पीढियों से पूजा अर्चना करने वाले आदिवासी परिवार के रामदास नागले ने बताया कि उनके पिता सुखलाल नागले व दादा उमराव नागले, ने बताया कि उनकी अनेक पीढियों से यहां पर भगवान भोलेनाथ की पूजन अर्चन की जा रही है। यही बात सात पीड़ियों से तिलक सिंदूर में पूजा अर्चना करने वाले पं पुरूषोत्तम जोशी का कहना है कि उनके दादा परदादा उन्हें बताते रहे हैं कि यहां पर भगवान भोलेनाथ भस्मासुर से छिपते हुए बचाव के लिए माता पार्वती व पुत्र गणेश के साथ दुर्गम जंगल व पहाड़ी पर आए थे। यहां पर कंदरा में उन्होंने कुछ दिन बिताए थे। लेकिन भस्मासुर को पता लग गया था। तब भगवान भोलेनाथ यहां सेे छलांग लगाकर गुफा के माध्यम से पचमढ़ी की ओर चले गए थे।
शिवलिंग पर चढ़ता है सिंदूर
मंदिर में पूजा करने वाले पुजारियों ने बताया कि देश विदेश के किसी भी शिवलिंग पर सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता है। सिर्फ यहां सिंदूर चढ़ाने की प्राचीन परंपरा है। पुजारियों ने तो यहां तक बताया कि यह शिवलिंग माता पार्वती ने बनाया था। माता पार्वती ने शिवलिंग की पूजा अर्चना की है। इसलिए यहां पर महिलाएं अपने सौभाग्य के लिए सिंदूर चढ़ाती हैं। जिसे उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यहां पर दंपत्ति सिंदूर चढ़ाते हैं। मंदिर परिसर में सिंदूर आसानी से मिल जाता है। महाशिवरात्रि व श्रावण माह में यहां देश के अनेक प्रांतों से बड़ी संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं। शिवभक्तों के आगमन के चलते महाशिवरात्रि पर यहां पर विशाल मेले का आयोजन भी होता है। एक दो दिन पूर्व से ही बड़ी संख्या में दुकानदार मेला में अपनी दुकानें लगाते हैं। मान्यता है कि यहां शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं।
सिंदूर चढ़ाने की मान्यता
पुजारियों व यहां के श्रद्धालुओं को उनके बुजुर्गों ने बताया है कि भस्मासुर राक्षस से बचने के लिए भोलेनाथ परिवार सहित इस स्थान पर रुके हुए थे। तभी सिंदूर नामक एक असुर ने माता पार्वती का हरण किया था। इसके बाद इसी स्थान पर सिंदूर असुर से भगवान गणेश का युद्ध हुआ और भगवान गणेश ने सिंदूर नामक राक्षस विजय प्राप्त कर उसका वध कर उसके रक्त से भगवान शिव का अभिषेक किया गया था। जिसके बाद भगवान शंकर को सिंदूर चड़ाया जाने लगा। मंदिर की पूजन की थाल में सिंदूर अवश्य रहता है। हनुमान जी को भी सिंदूर चढ़ाया जाता है। यहां पर लाल मुंह के बंदर भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं।
सिंदूर को लेकर एक अन्य दंत ककथा
जंगल व पहाड़ी क्षेत्र होने से यहां पर आदिवासियों का प्राचीन काल से वास रहा है। उनकी अनेक दंत कथाएं भी हैं उसी में से एक दंत कथा है कि प्राचीन समय में यहां सिंदूर के पेड़ बडी मात्रा में मौजूद थे। जो गोंडवाना क्षेत्र कहा जाता था। यहां के राजा दलवत सिंह उईके ने सतपुड़ा के जंगल से लाकर सिंदूर से भगवान शिव की आराधना की थी और इसे शिवरात्रि के बाद आने वाली होली पर्व पर सिंदूर से होली खेलने से जोड़कर भी मान्यता है। इसीलिए यहां भगवान को सिंदूर से अभिषेक किया जाता है। इन तमाम विशेषताओं के चलते इस स्थान का नाम तिलक सिंदूर पड़ा है।
आदिवासी कराते हैं पूजन
देश के तमाम शिवलिंगों की पूजन अर्चन वेदपाठी पंडित विद्ववान आचार्य कराते हैं। लेकिन तिलक सिंदूर की दूसरी विशेषता यह है कि यहां पर पंडित के स्थान पर आदिवासी पीढ़ियों से पूजन करते आ रहे हैं। वर्तमान में रामदयाल नागले पुजारी हैं।
तांत्रिक क्रियांओं के लिए भी प्रसिद्ध है तिलक सिंदूर
श्मशान वासी भगवान भोलेनाथ के साथ तांत्रिक क्रियाओं का भी विशेष महत्व है। तिलक सिंदूर के बारे में यह भी मान्यता है कि तांत्रिक क्रिया करने वाले साधक भी यहां तांत्रिक क्रिया के उद्देश्य से पहुंचते हैं। मंदिर के तालाब के उस पार अनेक आदिवासी गांवों का श्मशान स्थल भी है जहां विशेष पर्वों पर तांत्रिक क्रियाएं भी की जाती हैं। यह स्थान प्राचीन काल से आदिवासियों के राजा महाराजा का भी पूजन स्थल है। इस क्षेत्र में सागौन, साल, महुआ, खैर आदि के पेड़ काफी संख्या में हैं। यहां छोटी धार वाली नदीं हंसगंगा बहती है।
ग्राम जमानी में यह स्थान खटामा के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
ऐसे पहुंचा जा सकता है तिलक सिंदूर
नर्मदापुरम जिले की तहसील इटारसी से धरमकुंडी जाने वाले मार्ग पर 12 किलोमीटर पर जमानी गांव है यहां से दक्षिण दिशा में 8 किलोमीटर सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में तिलक सिंदूर धाम है। यहां पर हंसगंगा नदी बहती है।
कुछ प्रमुख विशेषताएं-
1925 से मेला लगाने की शुरुआत जमानी के माल गुजार की ओर से की गई थी।
1970 से इस स्थान को जनपद पंचायत केसला द्वारा टेक ओवर किया गया।
यहां का गुफा मंदिर अतिप्राचीन हैं, वहीं 1971 में पार्वती महल का निर्माण हुआ।
यह स्थान पहले मकड़ई के शाह परिवार की रियासत का हिस्सा था।
यहां पूजन के लिए पहले शाह परिवार द्वारा ही भौमका नियुक्त किया जाता था।
देश में एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जिस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है।
ओंकारेश्वर के बाद यह दूसरा स्थान हैं जहां चतुष्कोणीय जलहरी है।
यह बमबम बाबा जैसे कई सिद्ध पुरूषों की तप:स्थली भी रही है।
गणेश जी ने सिंदूर नामक राक्षस का वध किया था।
सिंदूर असुर के सिंदूरी खून से शिवजी का अभिषेक किया गया था।
पूर्व मंत्री स्व.सरताज सिंह के प्रयास से तिलक सिंदूर में बहुत कार्य हुए हैं।
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