मनोज सोनी एडिटर इन चीफ
हिंदू धर्म में आंवला नवमी का खास महत्व है
इस दिन आंवले के वृक्ष की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती हैं
नर्मदा पुरम। हिंदू धर्म में आंवला नवमी का खास महत्व है। इस दिन आंवले के वृक्ष की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। जानें आंवला नवमी से जुड़ी कथा व इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा व आंवला दान करने से क्या फल मिलता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी (31 अक्टूबर 2025) से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं, इसलिए इसे आंवला नवमी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा-अर्चना और दान का अक्षय फल मिलता है, इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। आंवला नवमी के दिन ही कृष्ण ने कंस के आमंत्रण पर वृंदावन छोड़कर मथुरा की ओर प्रस्थान किया था।
भारतीय शास्त्रों में आंवले को दैवीय फल माना जाता है। ‘पद्म’ और ‘स्कंद’ पुराण में वर्णन है कि आंवला ब्रह्माजी के आंसुओं से उत्पन्न हुआ। वहीं, एक अन्य कथा कहती है कि समुद्र मंथन के समय निकले अमृत कलश से पृथ्वी पर अमृत की बूंदें गिरने से आंवले अस्तित्व में आया।
एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर रही थीं। उनकी इच्छा हुई कि भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा की जाए। उन्होंने विचार किया कि विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है और शिव को बेल। इन दोनों के गुण एक साथ आंवले में हैं। देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे उन्हें भोजन कराया और उसके बाद स्वयं भोजन को प्रसाद रूप में ग्रहण किया। उस दिन से ही यह तिथि आंवला नवमी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा, आंवले से स्नान, आंवले को खाने और आंवले का दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। चरक संहिता में उल्लेख मिलता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन ने आंवले के सेवन से सदा युवा रहने का वरदान प्राप्त किया था। एक मान्यता यह भी है कि सतयुग की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को हुई थी।
एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन आदि शंकराचार्य को एक निर्धन स्त्री ने भिक्षा में सूखा आंवला दिया था। उस निर्धन स्त्री की गरीबी से द्रवित होकर शंकराचार्य ने मां लक्ष्मी की मंत्रों द्वारा स्तुति की, जो ‘कनकधारा’ स्तोत्र के रूप में जानी जाती है। उस निर्धन स्त्री के भाग्य में धन न होते हुए भी शंकराचार्य की विनती पर मां लक्ष्मी ने उसके घर स्वर्ण आंवलों की वर्षा करके उसकी दरिद्रता दूर की।
आंवला नवमी व्रत पूजा के लिए, सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। फिर आंवले के पेड़ के पास जाएं, उसकी जड़ में जल और दूध अर्पित करें। रोली, अक्षत, फूल, फल आदि से पेड़ की पूजा करें, पेड़ के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें, और कच्चे सूत या मौली लपेटें। अंत में, दीपक जलाएं, मंत्रों का जाप करें, और पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करें।
पूजा विधि
स्नान और संकल्प: सुबह उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। आंवला नवमी के दिन व्रत का संकल्प लें और घी का दीपक जलाएं।
पूजा सामग्री: पूजा के लिए रोली, अक्षत, फूल, फल, दूध, जल, गंगाजल, कच्चा सूत/मौली, धूप, दीप आदि सामग्री एकत्रित कर लें।
स्थान की तैयारी: आंवला वृक्ष के आसपास की जगह साफ-सुथरी करें।
देवता ध्यान: गणेश जी और अपने इष्ट देव की आराधना करें, फिर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करें।
आंवले के पेड़ की पूजा:
आंवले के पेड़ की जड़ में शुद्ध जल और कच्चा दूध चढ़ाएं।
रोली, अक्षत, फल-फूल, चंदन आदि अर्पित करें।
पेड़ के तने पर पीला कच्चा सूत या मौली लपेटें, 8 परिक्रमा करें और फिर दीपक जलाएं। कुछ जगहों पर 108 परिक्रमा भी की जाती है।
मंत्र जाप: पेड़ की परिक्रमा करने के बाद ॐ धात्र्ये नमः और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्रों का जाप करें।
भोग और भोजन: पूजा के बाद, भगवान को भोग लगाएं, फिर आंवला नवमी की कथा पढ़ें या सुनें।
दान और भोजन: ब्राह्मणों को भोजन कराएं और वस्त्र या अन्न का दान करें। इसके बाद, परिवार सहित पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करें।
अन्य महत्वपूर्ण बातें
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपरा है, जो भगवान विष्णु और शिवजी को भोजन कराने के बाद ही शुरू होती है।
इस दिन पितरों का तर्पण भी किया जाता है और उनके निमित्त ऊनी वस्त्र और कंबल दान किए जाते हैं।
आंवला नवमी पर, आंवले के वृक्ष की छाल को तिजोरी में रखने से धन-समृद्धि आती है।

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