मनोज सोनी एडिटर इन चीफ
जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष पद को लेकर सियासी जोड़तोड़ शुरू, दावेदारों का हाई-वोल्टेज ड्रामा
नर्मदा पुरम। जिला सहकारी केंद्रीय मर्यादित बैंक लंबे समय से अध्यक्ष विहीन है। सूत्रों की माने तो खाली हुए पद ने बैंक को भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का अड्डा बना दिया है। बैंक की स्थिति पहले की अपेक्षा इतनी बंद से बदतर हो चुकी है कि प्रदेश भर में इसकी बदनामी के चर्चे जगजाहिर हो रहे हैं। गौरतलब है कि करीब करोड़ रुपए की वसूली पेंडिंग है। जनचर्चा यह भी है कि जिला सहकारी बैंक की फिलहाल व्यवस्थाएं भगवान भरोसे चल रही हैं।
कलेक्टर की प्रशासकीय कमान, पर वक्त की कमी
बैंक फिलहाल कलेक्टर के अधीन चल रहा है, लेकिन सरकारी कामकाज और योजनाओं में व्यस्त कलेक्टर के पास इतना समय नहीं कि बैंक की बिखरी व्यवस्था को पटरी पर ला सकें। नतीजतन, वसूली के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। कर्मचारी और अधिकारी जगह-जगह वसूली के लिए जाते हैं, लेकिन हाथ खाली लौट आते हैं।
अध्यक्ष पद के लिए सियासी जोड़तोड़ शुरू
जिला सहकारी बैंक, जिसमें नर्मदा पुरम और हरदा जिले शामिल हैं के अध्यक्ष पद के लिए जोरदार जोड़तोड़ शुरू हो चुकी है। इस पद के सबसे प्रबल दावेदार के तौर पर नाम सामने आ रहा है वह है पूर्व विधायक अर्जुन पलिया का।
कांग्रेस से भाजपा तक पलिया की राजनीतिक यात्रा
अर्जुन पलिया कभी कांग्रेस के मजबूत नेता माने जाते थे, लेकिन प्रदेश और केंद्र के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी के चलते उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि भाजपा में शामिल होने के बाद भी पलिया को अब तक कोई बड़ा पद नहीं मिला। ऐसे में, उनके समर्थकों ने अब उन्हें जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनाने की मांग जोर-शोर से उठाई है।
भाजपा में गहरा कनेक्शन, समर्थकों की जोरदार लॉबिंग
भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता और पलिया के समर्थक इस मुद्दे पर एक्टिव हो गए हैं। लंबे समय से खाली पड़े इस पद पर उनकी नियुक्ति को लगभग तय माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि पलिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा को चार विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी, जिससे उनका कद और बढ़ गया।
पद के लिए ‘घोटाले’ का इतिहास और नई उम्मीदें
बैंक के पिछले कार्यकाल में हुए गड़बड़झाले और घोटालों का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। सूत्रों की माने तो पहले के अध्यक्षों के कार्यकाल में भी खूब गड़बड़ियां हुई थीं, लेकिन अब अर्जुन पलिया को इस पद पर बिठाने की चर्चा से उम्मीद जताई जा रही है कि बैंक की डूबती नैया को किनारे लगाया जा सकता है।
क्या पलिया संभालेंगे बैंक की कमान?
पलिया के दावेदार बनने के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। समर्थकों की ओर से जोरदार लॉबिंग हो रही है। देखना दिलचस्प होगा कि क्या अर्जुन पलिया को यह जिम्मेदारी मिलती है या फिर सियासी जोड़तोड़ का यह खेल कोई नया मोड़ लेगा।
क्या अर्जुन पलिया अपने प्रभाव और भाजपा के समर्थन के बल पर इस पद को हासिल कर पाएंगे या फिर अध्यक्ष पद का यह खेल आगे भी सिर्फ राजनीति की रोटियां सेंकने का जरिया बनकर रह जाएगा।
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